मुगल भी खेलते थे होली, हरम में होते थे खास इंतेजाम, टेसू के फूल से बनते थे रंग/Mughals also used to play Holi, special arrangements were made in Haram, colors were made from Tesu flowers
मुगलों को होली से लगाव था। एक रिपोर्ट के मुताबिक किला ए मोअल्ला यानि की लाल किले पर ईद की तरह ही होली भी मनायी जाती थी जिसे ईद ए गुलाबी कहा जाता था। इस दौरान यमुना के तट पर लाल किले के पीछे एक मेला लगता था और बहुत भीड़ जुटती थी. मेले में गाने-बजाने का इंतजाम होता था। कई कलाकार अपनी प्रतिभा दिखाते थे।
मुगल काल में भी मिमिक्री आर्टिस्ट हुआ करते थे
मुगल काल में भी मिमिक्री आर्टिस्ट हुआ करते थे जो शाही परिवारों के लोगों तक की नकल किया करते और इसे बुरा नहीं माना जाता था।इस लोगों को बादशाह और रानियां ढेरों इनाम देती थी। होली पर देशबर से गणिकाएं पहुंचती थी और जगह जगह महफिल लगती थी। व्यापारी और दुकानदार इस दौरान खूब कमाई करते थे.मुगलों में सबसे ज्यादा होली को बादशाह बहादुर शाह जफर ने इंजॉय किया था।
माना जाता है बहादुर शाह जफर के लिखे होली के फाग आज भी गए जाते हैं।मशहूर इतिहासकार इरफान हबीब ने एक यूट्यूब चैनल से बात करते ये बताया कि “रंग फेंकना इतिहास का एक हिस्सा है। मुगल जमाने की पेंटिंग भी मौजूद हैं। खासतौर से जहांगीर की पेंटिंग तो बहुत मशहूर है. वही मोहम्मद शाह पिचकारी के साथ होली खेलते थे। मुगल शासक दरबारियों के साथ होली का मजा लेते थे और फिर वो हरम में, घर में, अपनी बीबियों के साथ ही खूब रंग खेलते थे।
इतिहासकार मुंशी जकाउल्ला की तारीख-ए-हिन्दुस्तान किताब में बताया गया है कि जब बाबर ने देखा कि लोग रंगों से भरे हौदिया में लोगों को उठाकर पटक रहे है तो फिर बाबर ये पसंद आया और उसने हौदिया में शराब भरवा दी। आइन-ए-अकबरी में लिखा है कि अकबर को होली से बेहद लगाव था वो सालभर ऐसी चीजें जमा करते थे ताकि रंगों का छिड़काव और पानी को दूर तक फेंका जा सके. उस समय रंग टेसू के फूलों से बनाये जाते थे।