जानिए श्री कृष्ण के अनमोल विचारों के बारे में/Know about the priceless thoughts of Shri Krishna
दोस्तो आज आपको भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishna) के अनमोल वचनों के बारे मे बताने जा रहे हैं यदि आप इन अनमोल वचनों को अपनी जिंदगी मे उतारे तो आप की सोच बदल सकती है और अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बना सकते है| भगवान श्री कृष्ण के बारे मे हम सब ने सुना है और कई बार पढ़ा है की भगवान श्री कृष्ण को 108 नामो से जाना जाता है| भगवान श्री कृष्ण अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामों से जाने जाते है| भगवान श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इन्हें आजीवन “वासुदेव” के नाम से जाना गया था| तो चलिये उन अनमोल वचनों के बारे जानते है-
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ में डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।” – श्री कृष्ण (Shri Krishna)
“हर काम का फल मिलता है-‘ इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है।”- श्री कृष्ण
“विषयों का चिंतन करने से विषयों की आसक्ति होती है। आसक्ति से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध होता है।क्रोध से सम्मोहन और अविवेक उत्पन्न होता है।” – श्री कृष्ण (Shri Krishna)
“संयम का प्रयत्न करते हुए ज्ञानी मनुष्य के मन को भी चंचल इंद्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं। जिसकी इंद्रियां वश में होती है, उसकी बुद्धि स्थिर होती है।” – श्री कृष्ण
“जो भी मनुष्य अपने जीवन , आध्यात्मिक ज्ञान के चरणों के लिए दृढ़ संकल्प में स्थिर है;वह सामान्य रूप से संकटों के आक्रमण को सहन कर सकते हैं और निश्चित रुप से खुशियां और मुक्ति पाने के पात्र हैं।” – श्री कृष्ण (Shri Krishna)
जब तुम्हारी बुद्धि मोह रूपी दलदल को पार कर जाएगी; उस समय तुम शास्त्र से सुने गए और सुनने योग्य वस्तुओं से भी वैराग्य प्राप्त करोगे।” – श्री कृष्ण
“केवल कर्म करना ही मनुष्य के वश में है, कर्मफल नहीं। इसलिए तुम कर्मफल की आसक्ति में ना फसो तथा कर्म का त्याग भी ना करो।” – श्री कृष्ण
“तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया;यही से लिया;जो दिया, यही पर दिया, जो लिया,इसी(ईश्वर) से लिया; जो दिया,इसी को दिया।” – श्री कृष्ण
“जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए यह शत्रु के समान कार्य करता है।” – श्री कृष्ण
. “खाली हाथ आए और खाली हाथ वापस चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का या परसों किसी और का होगा, तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो।” – श्री कृष्ण
“सुख – दुख, लाभ – हानि और जीत – हार की चिंता ना करके, मनुष्य को अपनी शक्ति के अनुसार कर्तव्य कर्म करना चाहिए। ऐसे भाव से कर्म करने पर मनुष्य को पाप नहीं लगता।” – श्री कृष्ण