why did Nepal leave India and join hands with China

आख़िरकार नेपाल ने भारत को छोड़ चीन से क्यों मिलाया हाथ After all, why did Nepal leave India and join hands with China?

रक्षा एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि बेंगलुरू स्थित एसएसएस डिफेंस ने गुणवत्ता के आधार पर यह कांट्रैक्ट जीता जिसके लिए चीन की तरफ से भारी-भरकम बोली लगाई गई थी.
पूर्व में नेपाली सेना भारत से गोला-बारूद आयात करती थी, लेकिन भारत निर्मित इंसास राइफलों की जगह कोरियाई और अमेरिकी एम4, एम16 और अन्य नाटो राइफलों का इस्तेमाल शुरू करने के बाद उसने ऐसा करना बंद कर दिया था।

नेपाल की सेना ने भारत को बड़ा झटका दिया है

सीमा के पास एक्‍सप्रेसवे बनाने का ठेका अब चीन की एक विवादित कंपनी को दिया है। काठमांडू-तराई-मधेश एक्‍सप्रेसवे को बनाने का काम चाइना फर्स्‍ट हाइवे इंजीनियरिंग कंपनी को दे दिया गया है। नेपाल में चुनाव से ठीक पहले नेपाली सेना ने भारतीय कंपनी को ठेका न देकर उसे चीनी कंपनी को दिया है। यही वही चीनी कंपनी है जिसे पहले यह कहकर ठेका नहीं दिया गया था कि उसके पास इस प्रॉजेक्‍ट को पूरा करने के लिए तकनीकी क्षमता नहीं है।

नेपाली सेना के इस फैसले को देश में ही संदेह की नजर से देखा जा रहा है। नेपाल में 20 नवंबर को आम चुनाव होने वाले हैं और नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली पहले ही भारत के खिलाफ जहरीले बयान दे रहे हैं। गत 11 नवंबर को इस सड़क प्रॉजेक्‍ट की प्रभारी नेपाली सेना ने एक पत्र जारी करके चीन की कंपनी को पिछले दरवाजे से सड़क बनाने की अनुमति दे दी। नेपाली सेना ने जिन कंपनियों के प्रॉजेक्‍ट को खारिज किया है, वे अब कोर्ट में जाने की तैयारी कर रही हैं।

नेपाली सेना ने चीनी कंपनी की शिकायत के बाद दिया ठेका

भारत की कंपनी अफकोन्‍स इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर ने भी इस सड़क के लिए बोली लगाई थी। इस बात के संकेत हैं कि पूरे मामले को अब नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ उठाया जाएगा। यही नहीं इस पूरी बोली प्रक्रिया में पारदर्शिता भी नहीं बरती गई। चीनी कंपनी के विजेता घोषित किए जाने पर सबकी त्‍योरियां चढ़ गई हैं। इस सड़क को बनाने का काम साल 2017 में शुरू हुआ था और इसे पूरा करने की नई अंतिम समय सीमा साल 2024 है। चीन की कंपनी ने नेपाल के प्रधानमंत्री के नियंत्रण में आने वाले पब्लिक प्रोक्‍योरमेंट ऑफिस के पास शिकायत दर्ज कराई थी।

इससे पहले नेपाली सेना ने तकनीकी आधार पर चीन की कंपनी को खारिज कर दिया था। वहीं चीनी कंपनी के शिकायत के बाद उसे बोली लगाने की प्रक्रिया में शामिल कर लिया गया। यही नहीं नेपाली सेना ने इस बोली प्रक्रिया में शामिल होने के लिए कंपनियों को मात्र 15 दिन का समय दिया था। इसके बाद चीनी कंपन‍ी को भी शामिल किया गया। 7 नवंबर को चीनी कंपनी को इस सड़क को बनाने का ठेका दे दिया गया।

गौरतलब है कि 2005 में माओवादियों के साथ एक भीषण मुठभेड़ में 43 नेपाली सैनिकों के शहीद होने के बाद उसके प्रवक्ता ने राइफलों को घटिया किस्म की बताया था और साथ ही दावा किया था कि अगर उन्हें बेहतर हथियार मिलते तो सैन्य ऑपरेशन सफल रहा होता। भारतीय और नेपाली सेना के बीच रिश्तों को एक लंबा इतिहास रहा है. भारतीय सेना में करीब 35,000 नेपाली गोरखा सेवारत हैं, वहीं हिमालयी राष्ट्र में 1.3 लाख से अधिक ऐसे पूर्व सैनिक भी हैं जिन्हें भारत में अपनी सैन्य सेवाओं के लिए पूर्ण पेंशन मिल रही है।

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